बात जब युद्ध, तिलिस्म, जादुई दुनिया और झगड़ते परिवारों की मंत्रमुग्ध कर देने वाली कहानियों की होती है, तो 'गेम ऑफ थ्रोन्स' और 'हैरी-पॉर्टर' जैसी कहानियां दिमाग में आती हैं, लेकिन इन कहानियों से कई साल पहले 'चंद्रकांता' जैसा काल्पनिक उपन्यास रचा जा चुका था, जिसे आज भी महाकाव्य की श्रेणी में रखना अतिश्योक्ति नहीं होगी. 1888 में प्रकाशित यह उपन्यास हिंदी का पहला बेस्टसेलर है. सही अर्थों में इस क्लासिक को रचने वाले देवकीनंदन खत्री दुर्भाग्यवश आज की युवा पीढ़ी के लिए व्यापक रूप से अज्ञात हैं, लेकिन आपको बता दें कि अध्यायों की एक श्रृंखला के रूप में प्रकाशित होने वाला यह उपन्यास 1900 के शुरुआती वर्षों में लोकप्रियता के चरम पर था. 1861 को मुजफ्फरपुर के पूसा (बिहार) में जन्मे देवकीनंदन खत्री को आधुनिक हिंदी उपन्यासकारों की पहली पीढ़ी में गिना जाता है. देवकी बाबू ने जब 'चंद्रकांता' को लिखना शुरू किया था उस समय अधिकांश लोग उर्दू भाषी थे, ऐसे में उनका मुख्य लक्ष्य एक ऐसी रचना करना था जिसके माध्यम से हिंदी देवनागरी का भी प्रचार-प्रसार हो सके. ये करना आसान तो नहीं था, लेकिन उन्होंने यह कर दिखाया. नब्बे का वह दौर आज भी लोगों के ज़ेहन में जिंदा है जब डीडी नेशनल के माध्यम से 'चंद्रकांता' की कहानी घर-घर में पहुंची और उसने लोकप्रियता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए.
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तिलिस्मी कहानियों के लेखक 'देवकीनंदन खत्री' ने लिखा था आधुनिक भारत का पहला बेस्टसेलर उपन्यास 'चंद्रकांता'
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August 02, 2023